हर एक पल को संजोता ये मन , कभी हँसता तो कभी रोता ये मन सपने है बुनता पर डरता भी है , कसक सी लेकर चलता ये मन आडम्बर भरी ये दुनिया सारी , सोच कर आहत होता ये मन न रिश्ते न नाते न अपना न पराया , इस भूल भुलैया में उलझा ये मन गुम हो गया प्यारा समां वो , जिसे याद करके रोया ये मन बचपन के झूले वो प्यारी सी बातें , बस उन्ही यादों में खोया ये मन जीते थे जी भर के हम वो पल , कहाँ हैं वो साथी कहता ये मन लड़ते-झगडते भी रौनक थी लगती ,आओ न लड़ते कहता ये मन वो घर-घर का खेला बहनों के संग , गुड़िया की विदाई याद करता ये मन वो माचिस की डिब्बी का टोहना ओ भाई , वो रंगों का मिलाना कैसे भूले ये मन सड़क पे रेल चलाना वो दिन भर , वो मिलना फिर बिछड़ना याद करता ये मन जीवन के रेले में ऐसे अकेले में , उन प्यारे दिनों को तरसता ये मन जादू की दुनियां थी जादू से सपने थे ,आज उन्ही को तलाशता ये मन कहाँ हैं वो साथी कहाँ है वो दुनिया , वापस जाने को मचलता ये मन बड़े हो गए अपने पैरों पर खड़े हो गए , लेकिन वो लड़खड़ाना न भूल पाता ये मन बातें बड़ी-बड़ी करते हैं सब , पर क्या बचपन को छोड़ पाया ये मन सूरत न देखी बरसों से जिनकी , उनको मिलने की जिद्द करता ये मन हर एक पल को संजोता ये मन , कभी हँसता तो कभी रोता ये मन
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