पल- पल , हर पल फिसलता जीवन

 हम जब से इस दुनियां में आये हैं कुछ न कुछ उधेड़-बुन में ही हैं इस धरती पर पहली सांस लेने से लेकर आज इस पल तक इस जीवन की गहराई को समझने की एक नाकाम कोशिश की है . कभी सोचा है की इस दुनियां में हम न तो आये अपनी मर्जी से हैं और न ही जाना अपनी मर्ज़ी से है लेकिन इस सब के बीच का जो समय है इसको हम कैसे जी रहे हैं ? आज मन में ये विचार आ रहा है हम हर एक पल में किसी न किसी उधेड़ बुन में रहते हैं न जाने ये क्या है  शायद कोई ऊपर वाले की माया है या कुछ और की सभी भ्रमित हैं और ये अमूल्य जीवन रेत के जैसे हाथों से फिसल रहा है कैसे दिन , महीने और फिर साल गुजर रहे हैं पता ही नहीं चल रहा है , पीछे मुड़ कर देखें तो कुछ- कुछ याद है और कुछ भूल गया . हम खुद को आज में देखें तो जीवन का एक नया पड़ाव दस्तक दे रहा है लेकिन जो छूट गया वो कुछ अधूरा सा लगता है ,क्यों ये जीवन कभी खुद में परिपूर्ण नहीं लगता क्या जीने का तरीका कहीं गलत हो गया या फिर प्राथमिकताएं तय करने में कहीं चूक हो गयी या फिर जिंदगी का हर दिन इतना चुनौतीपूर्ण रहा की ये साल कहाँ चले गए कुछ पता ही नहीं चला बहुत कुछ करना था बहुत कुछ यादें समेटने को थी पर आज दोनों हाथ खाली नजर आते हैं . ये जो विचार मन में हैं इसके क्या मायने लेकर आगे बढूं क्या ये कोई संकेत है जो चेता रहा है की अभी भी जो हाथ में है उसे संभाल लो समेट लो ऐसा न हो की बस ये वक़्त बीत जाए और फिर दोबारा यही सोच कुछ समय बाद एक दस्तक दे की क्या पाया और क्या खोया या फिर दूसरी तरफ मेरा मन मुझे भटका रहा है और कुछ ज्यादा सोच रहा है और इतना सोचने जैसा कुछ है ही नहीं ये जीवन बस एक प्रवाह है जो किसी के लिए भी किसी कारण से भी रुकता नहीं है बस चलता जाता है और इतना ज्यादा विचार करने जैसा इस में कुछ है भी नहीं. लेकिन हम इसको इतना हल्का फुल्का सा मान कर भी तो नहीं जी रहे हैं हर दिन और हर एक बीत रहे पल के साथ क्या कुछ होता है जो निभाना होता है और पता नहीं कितने ही बोझ मन पर लेकर जी रहे होते हैं और वक़्त , ये वक़्त ही तो किसी के पास नहीं है न तो अपने लिए और न किसी और के लिए अपने इस अमूल्य वक़्त को हम खर्च कर कहाँ रहे हैं हम ये सब क्या हासिल करने की होड़ में हैं जहाँ हम अपनी इतनी कीमती चीज़ खर्च रहे हैं और दुःख भी नहीं हो रहा .कितना महत्व है हमारी इन सारी उपलब्धियों का इस महत्वपूर्ण जीवन के लिए .हम ये सब जो भी करते हैं इसका लक्ष्य जीवन को बेहतर बनाना होता है लेकिन विडम्बना ये है की वही बेहतरी हम महसूस करने का वक़्त नहीं निकाल पाते , ये जीवन भर की दौड़ है जो थमने ही नहीं देती .चाहतें बहुत कुछ करने की होती हैं अपने लिए हर पल जीने की होती हैं पर धरातल पर कितना ये हो पाता है ये एक सवाल है जो आज कचोट रहा है मुझे अन्दर कहीं . सोचता तो ये मन बहुत कुछ है पर जिस दिन से एक-एक पल के महत्व को समझ लिया उस दिन सार्थक हो जायेगा ये जीवन. इसलिए जीवन का ज्यादा लंबा होना जरुरी नहीं है बल्कि इसका सार्थक होना महत्व रखता है. जीवन में यही सार्थकता लाने  की एक छोटी सी कोशिश है उम्मीद करती हूँ की सफल हो पाएगी .....

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